
अजमेर रेप : नफ़ीस चिश्ती, नसीम उर्फ़ टार्ज़न, सलीम चिश्ती, इक़बाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद ज़मीर हुसैन
अजमेर रेप केस के पीड़ितों में से एक, संजना (बदला हुआ नाम), आज भी उस भयावह घटना की पीड़ा को अपने भीतर समेटे हुए हैं, जो 1992 में उनके साथ हुई थी। उस समय मात्र 18 साल की संजना, कैसेट लेने बाजार गई थी जब उनके पड़ोसी ने उनके साथ छल किया और उन्हें खंडहर तक ले गया। वहां सात-आठ लोगों ने उनके साथ बलात्कार किया और उनकी नग्न तस्वीरें खींची। इस दर्दनाक घटना के बाद उन्हें कई दिनों तक ब्लैकमेल किया गया और शहर में उनकी तस्वीरें बांटी गईं।
1992 में दैनिक नवज्योति अखबार ने इस मामले को उजागर किया, और मामला पुलिस और सरकारी एजेंसियों तक पहुंचा। अजमेर रेप केस की जांच सीआईडी-क्राइम ब्रांच को सौंपी गई, और हाल ही में स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने इस मामले में कुछ आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
हाल ही में अजमेर की स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने इस मामले में नफ़ीस चिश्ती, नसीम उर्फ़ टार्ज़न, सलीम चिश्ती, इक़बाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद ज़मीर हुसैन को दोषी मानते हुए उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई और पांच-पांच लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया.
संजना की कहानी केवल इस घटना की पीड़ा तक सीमित नहीं है। शादी के बाद, जब उन्होंने अपने पति को इस घटना के बारे में बताया, तो उन्होंने धोखे से उन्हें मायके वापस भेजकर तलाक़ दे दिया। दूसरी शादी के बाद, जब उनके दूसरे पति को इस घटना का पता चला, तो उन्होंने भी उन्हें छोड़ दिया और उनका दस महीने का बच्चा उनसे छीन लिया।
आज संजना एक किराए के कमरे में रहती हैं, और सरकारी पेंशन और मुफ्त राशन पर निर्भर हैं। उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य समस्याएं भी उनका पीछा नहीं छोड़तीं। इसके बावजूद, उन्होंने कोर्ट में गवाही देकर न्याय पाने की लंबी लड़ाई लड़ी।
संजना कहती हैं, “32 साल में किसी ने मेरी मदद नहीं की, लेकिन मीडिया ने मेरी लड़ाई लड़ी और मुझे हौसला दिया।”
उनकी कहानी उन महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जिन्होंने अत्याचार का सामना किया है और न्याय की लड़ाई लड़ी है, चाहे कितनी भी लंबी क्यों न हो।

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