December 10, 2025

जीएसटी का जाल: पॉपकॉर्न, पुरानी कारें और राज्यों के अधिकारों पर नई बहस


भारत में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लागू हुए सात साल हो चुके हैं, लेकिन इसके विभिन्न पहलुओं पर आज भी बहस जारी है। जीएसटी को “एक देश, एक कर” के रूप में प्रस्तुत किया गया था, लेकिन इसकी संरचना और लागू करने के तरीके ने कई सवाल खड़े किए हैं।

हाल ही में राजस्थान के जैसलमेर में जीएसटी काउंसिल की 55वीं बैठक में पॉपकॉर्न और पुरानी कारों पर जीएसटी दरों में बदलाव की घोषणा ने जनता और विशेषज्ञों के बीच व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। पॉपकॉर्न पर तीन अलग-अलग टैक्स स्लैब और पुरानी कारों पर जीएसटी दर बढ़ाने की घोषणा ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह कर प्रणाली वास्तव में सरल है, या फिर यह अधिक जटिल हो चुकी है।


पॉपकॉर्न और टैक्स स्लैब का उलझा गणित

55वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में पॉपकॉर्न पर अलग-अलग टैक्स दरों का निर्धारण किया गया:

  • बिना लेबल वाले साधारण पॉपकॉर्न पर 5% टैक्स।
  • लेबल के साथ बेचे जाने वाले मसालेदार पॉपकॉर्न पर 12% टैक्स।
  • चीनी या कैरेमल वाले पॉपकॉर्न पर 18% टैक्स।

इस निर्णय ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न की। लोग सिनेमाघरों में बेचे जाने वाले महंगे पॉपकॉर्न और सड़क पर बिकने वाले सस्ते पॉपकॉर्न के बीच तुलना कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विभाजन उपभोक्ताओं के लिए और भ्रम पैदा करेगा।

टैक्स विशेषज्ञ विकास ने इसे और स्पष्ट करते हुए बताया कि अगर आप सिनेमाघर में मसालेदार पॉपकॉर्न खाते हैं तो आपको केवल 5% टैक्स देना होगा, जबकि ट्रेन में कैरेमल पॉपकॉर्न खरीदने पर 18% टैक्स देना होगा। यह जटिलता आम आदमी के लिए टैक्स सिस्टम को समझने में एक बड़ी बाधा है।


पुरानी कारों पर जीएसटी दर में बढ़ोतरी

बैठक में पुरानी कारों पर जीएसटी दर को 12% से बढ़ाकर 18% करने की सिफारिश की गई। यह दर केवल व्यवसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा बेची जाने वाली पुरानी कारों पर लागू होगी।

पुरानी कार खरीदने और बेचने का व्यवसाय करने वाली कंपनियों के लिए यह निर्णय चिंताजनक है। कार्स-24 के सीईओ विक्रम चोपड़ा का कहना है, “पुरानी कारें लाखों भारतीयों के लिए कार रखने का सपना साकार करती हैं। इस टैक्स वृद्धि से यह क्षेत्र प्रभावित होगा और इसका विकास धीमा हो जाएगा।”

यह सवाल उठता है कि क्या सरकार ने इस कदम के संभावित सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का आकलन किया है।


जीएसटी और राज्यों के अधिकारों का विवाद

जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के अधिकार सीमित हो गए हैं। झारखंड के मंत्री रामेश्वर उरांव का कहना है, “राज्यों के पास केवल पेट्रोल, डीज़ल और शराब पर टैक्स लगाने का अधिकार बचा है।”

जीएसटी की संरचना में राज्यों की भूमिका सीमित हो चुकी है। केंद्र सरकार के पास जीएसटी काउंसिल में अधिक अधिकार हैं, जिससे विपक्षी राज्य सरकारों के लिए अपने आर्थिक हितों की रक्षा करना मुश्किल हो जाता है।


जीएसटी: एक जटिल कर प्रणाली?

जीएसटी को एक सरल और प्रभावी कर प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया गया था। लेकिन चार अलग-अलग टैक्स स्लैब और विशेष वस्तुओं पर अलग-अलग टैक्स दरें इसे जटिल बना रही हैं। उदाहरण के लिए:

  • 5% टैक्स स्लैब: खाद्य तेल, मसाले, कोयला।
  • 12% टैक्स स्लैब: प्रोसेस्ड फूड, आयुर्वेदिक दवाएं।
  • 18% टैक्स स्लैब: आईटी सेवाएं, गैर-एसी रेस्तरां।
  • 28% टैक्स स्लैब: लग्ज़री वस्तुएं, तंबाकू।

इन स्लैबों के बावजूद, कई उत्पाद और सेवाएं जीएसटी से बाहर हैं, जैसे पेट्रोल, डीज़ल और शराब।


जीएसटी: जनता पर बढ़ता बोझ

पॉपकॉर्न और पुरानी कारों पर टैक्स दरों में बदलाव केवल एक छोटा उदाहरण है कि कैसे जीएसटी नीति आम जनता पर प्रभाव डालती है।

  • पॉपकॉर्न: रोज़मर्रा की वस्तुओं पर टैक्स दरें उपभोक्ताओं के लिए बोझ बढ़ा रही हैं।
  • पुरानी कारें: मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों के लिए सस्ती कार खरीदना मुश्किल हो सकता है।

जीएसटी का उद्देश्य एक सरल कर प्रणाली बनाना था, लेकिन इसकी जटिल संरचना और बार-बार बदलती दरें इसे जनता और व्यापारियों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण बना रही हैं।


निष्कर्ष

जीएसटी काउंसिल के हालिया निर्णय ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह प्रणाली वास्तव में सरल और उपभोक्ता-अनुकूल है। पॉपकॉर्न और पुरानी कारों पर बढ़े टैक्स दरों का प्रभाव न केवल उपभोक्ताओं पर पड़ेगा बल्कि इससे जुड़े व्यवसाय भी प्रभावित होंगे।

सरकार को चाहिए कि वह जीएसटी प्रणाली को और पारदर्शी, सरल और सभी के लिए लाभकारी बनाए।

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