December 10, 2025

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या अगले साल होने वाले आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की राह मुश्किल हो गई है? क्या मोदी की लोकप्रियता कम हो रही है? क्या कांग्रेस अब बीजेपी को हराने में सक्षम हो गई है?

बीजेपी पिछले नौ सालों से केंद्र की सत्ता में है और कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन मोदी की यह कोशिश कर्नाटक में रंग नहीं ला पाई.

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के साथ ही उसका दावा मज़बूत हुआ है कि अगले साल लोकसभा चुनाव में बीजेपी विरोधी खेमे का नेतृत्व वही कर सकता है.

अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले कई और राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. इन राज्यों में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार है.

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इसी साल नवंबर महीने में चुनाव हैं और राजस्थान में दिसंबर में. कहा जा रहा है कि जिस तरह से मध्य प्रदेश का चुनाव बीजेपी के लिए मुश्किल है, उसी तरह से कांग्रेस के लिए राजस्थान में.

मोदी अलोकप्रिय नहीं

नीरजा चौधरी कहती हैं, “कर्नाटक में बीजेपी के पास स्थानीय नेतृत्व कांग्रेस की तुलना में काफ़ी कमज़ोर है. बीजेपी के पास येदियुरप्पा के अलावा कोई कद्दावर नेता नहीं है. येदियुरप्पा भी अब काफ़ी अलोकप्रिय हो गए हैं. कर्नाटक में बीजेपी की हार से ज़्यादा कांग्रेस की जीत महत्वपूर्ण है.”

नीरजा कहती हैं, “मैं नहीं मानती हूं कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत मोदी के अलोकप्रिय होने के कारण है. हाँ ये ज़रूर कह सकती हूँ कि बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व ख़ासा अलोकप्रिय था. दूसरी बात यह कि जितनी बड़ी जीत कांग्रेस को मिली है, उससे साफ़ है कि पारंपरिक रूप से बीजेपी को वोट करने वाले लिंगायतों ने भी कांग्रेस को वोट किया है.”

आने वाले चुनावों में कांग्रेस को बीजेपी से ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना होगा. राजस्थान में सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत का विवाद बढ़ता जा रहा है. दोनों नेता दो स्वर में बात कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में जा चुके हैं और इसका सीधा असर प्रदेश कांग्रेस की सेहत पर पड़ा है. दूसरी तरफ़ राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी के भीतर ऐसी कोई कलह नहीं है.

वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषण को लगता है कि नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से कर्नाटक में पूरा ज़ोर लगा दिया था, उसे तगड़ा झटका लगा है.

मोदी की अपील काम नहीं आई

रामाशेषण कहती हैं, “मोदी ने चुनावी कैंपेन के आख़िर में बजरंगबली के नाम पर वोट मांगना शुरू किया. कई रोड शो किए लेकिन उनकी अपील काम नहीं आई. बीजेपी ने येदियुरप्पा को हटाकर बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया और यह भी उलटा पड़ा.”

“कर्नाटक में बीजेपी मतलब येदियुरप्पा है. 2012 में बीजेपी येदियुरप्पा को हटाकर अपनी हैसियत का अंदाज़ा लगा चुकी थी. यह ग़लती आडवाणी ने की थी और फिर से वही ग़लती मोदी ने दोहराई.”

वो कहती हैं, “भले कर्नाटक चुनाव के नतीजे से अगले साल आम चुनाव का आकलन नहीं कर सकते लेकिन यह तो तथ्य है कि कर्नाटक की जनता ने मोदी की हर अपील ठुकरा दी.”

“बीजेपी के लिए यह सबक़ है कि वह प्रदेश के स्थानीय नेताओं को ख़ारिज कर लंबे समय तक चुनाव नहीं जीत सकती है. बीजेपी सभी प्रदेश को हरियाणा और उत्तराखंड की तरह नहीं हाँक सकती है.”

उत्तराखंड में बीजेपी ने पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था.

संदेश क्या है?

पिछले साल दिसंबर में बीजेपी को गुजरात में रिकॉर्ड जीत मिली थी और कांग्रेस को शर्मनाक हार. वहीं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को जीत मिली थी.

लेकिन हिमाचल में बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में मामूली अंतर था. हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का वोट शेयर 43.90 रहा था और 40 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी का वोट शेयर 43 प्रतिशत रहा था और 25 सीटों पर जीत मिली थी.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल रहे जाने-माने राजनीतिक एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव का मानना है कि कर्नाटक चुनाव का नतीजा इतना निरपेक्ष नहीं रहेगा.

योगेंद्र यादव ने द प्रिंट में लिखा है, “कर्नाटक के चुनावी नतीजे के बाद उत्साहित कांग्रेसी बीजेपी के अंत की घोषणा कर सकते हैं. बीजेपी प्रवक्ता कहेंगे कि विधानसभा चुनावों का लोकसभा चुनाव से कोई संबंध नहीं है. इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का जनादेश लोकसभा में भी दोहराया जाएगा.”

“मेरा मानना है कि इस नतीजे का मनोवैज्ञानिक असर होगा. कांग्रेस की जीत यह संदेश देगी कि बीजेपी को भी हराया जा सकता है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद बना माहौल ज़िंदा रहेगा. कर्नाटक के चुनावी नतीजे के बाद 2024 के आम चुनाव का मैदान खुला हुआ है. कांग्रेस की जीत यह भी बता रही है कि सांप्रदायिकता चुनाव जीतने की गांरटी नहीं है.”

जाने-माने राजनीति कॉलमिस्ट और इतिहासकार रामचंद्र गुहा का कहना है कि कर्नाटक ने बीजेपी को अपमानजनक हार दी है और यह कर्नाटक की स्थानीय बीजेपी से ज़्यादा निजी तौर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की हार है. रामचंद्र गुहा ने जाने माने पत्रकार करण थापा को दिए इंटरव्यू में कहा, “कर्नाटक में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाया था और स्थानीय नेतृत्व को किनारे रखा था. विज्ञापनों में इसे साफ़ देखा गया. दूसरी ओर कांग्रेस के विज्ञापनों में गांधी परिवार नेपथ्य में था और डीके शिवकुमार के साथ सिद्धरमैया बिल्कुल फ़्रंट पर थे. नरेंद्र मोदी ने अपनी पर्सनालिटी और करिश्मा को खूब दांव पर लगाया लेकिन कुछ भी काम नहीं आया.”

कांग्रेस की जीत पर जाने-माने अर्थशास्त्री और मनमोहन सिंह की सरकार में आर्थिक सलाहकार रहे कौशिक बासु ने लिखा है, “कर्नाटक जो आज करता है, भारत उसे कल करता है.”

बासु कहना चाह रहे हैं कि कर्नाटक के आज का जनादेश आने वाले वक़्त का प्रतिबिंब है.

About The Author

2 thoughts on “कर्नाटक की हार से मोदी को कितना नुकसान?

  1. BJP is trying to fool #Hindu. He has started lots of welfare schemes for #Muslims by imposing numerous #Taxex on #Hindus.

    When election comes he started shouting Hindus are in danger and post wining deliberately ignoring him.

    Hindus were killed in many states and BJP was sitting ideal and watching the genocides.

    1. The Bharatiya Janata Party (BJP) is a political party in India that is known for its Hindu nationalist ideology. Some critics have accused the party of using this ideology to polarize the public along religious lines, which can be seen as an attempt to consolidate the Hindu vote bank. The party’s policies, statements, and actions are often scrutinized and debated for their impact on communal harmony and the secular fabric of Indian society.

      It is important to note that any political party’s actions and policies should be assessed based on their impact on society and their adherence to constitutional values, rather than on their association with any particular religion or ideology. The Indian Constitution guarantees the right to freedom of religion and enshrines secularism as a fundamental principle. As such, any political party must work within the framework of the constitution and respect the rights of all citizens, regardless of their religion.

Leave a Reply to prafulkr Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *